बने कविता नहीं अगर तो
लिखो ऊट-पटाँग
जो ज्ञान की बातें फांके
खींचो उसकी टांग
पढ़ा ज्ञान सब धरा रह गया
नहीं लगा कुछ हाथ
अब तू बैठा रह गया
झुका शर्म से माथ
रोना रोते रोते जब
भर जाये तालाब
तालाब में मच्छी पकड़ो
ऊँचे देखो ख्वाब
फूले सेमल टेसू फूले,
फूले अपनी तोंद,
झूले भंवरे फूलों ऊपर
भौंक सिपहिया भौंक
मुंह तो काला हो ही जाये
असमानी हों बाल
नाम ख़ाक रोशन करेंगे
अपने जैसे लाल
रंग गुलाल अबीर उड़े और
रहे नहीं कुछ होश,
अबकी होली ऐसे खेलो
हिरन और खरगोश...
सबको होली मुबारक !
चश्मे वाली फोटो अपनी है और दूसरी दोस्त की...
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