सुबह जब रामभरोस काम पर जाने के पहले रोटी खा रहा था, तो उसकी औरत ने उससे पूछा..."सुनो, जे असली क्रांतिकारी कौन है?" रामभरोस ने अपने हाथ का कौर रोककर कहा अरे का बात करती हो? दूर लाल देश में लाल किताब में लिखे को जो लाल कोठी में बैठे-बैठे बांचत हैं, वही असली क्रांतिकारी हैंगे , इस पर सुमरती ने मुंह बिचकाया ओर कहा हटो..आप तो हर चीज़ को हलके-फुल्के में लेत हो..मेरी समझ में तो जो एकई जगह पर बैठ के पूरे देश-दुनिया की क्रान्ति को भविष्य बता दे वही क्रांतिकारी वास्तव में दमदार होत है. ओर हाँ सुनो ज़रा बाजार से आलू-प्याज लेते अइयो.., इस पर रामभरोस भड़क उठा, "अरे ओ क्रान्ति की अम्मा.. प्याज कहाँ से लाऊं? प्याज खरीदने जितनो बैंक बैलेंस नहीं है मेरो . तू खुद ही देख लइयो, जब खेत की तरफ जाएगी" . यह कहकर मन ही मन माओ का भजन करता हुआ वह मजदूरी करने चल पडा.
इधर सुमरती ने भी झटपट तगाड़ी उठाई...और 'यमुना तट पर लेनिनवा बंसी बजाए रे' गुनगुनाती हुई खेत को चली, रस्ते में उसे रामप्यारी मिल गयी, रामप्यारी ने बातों ही बातों में उससे पूछ लिया, कि द्वंदात्मक भौतिकवाद का जो त्रोत्स्कीवादी स्वरुप है उस पर उसके क्या विचार हैं, साथ ही बबलू के ताऊ की लम्बी बीमारी पर भी बात हुई, सुमरती ने पसीना पोंछते हुए कहा... 'देख री, मोहे गलत मत समझियो, पर जे त्रोत्स्की वाले लच्छन हमें कोई ठीक न लगत हैं, हम तो जेई कहें कि जा कछु वा बड़ी किताब में लिखौ है, बई होगो. अब होनी को कोई टार सकत है? अब तुमई बताओ, हमरी भूरी गैया २ किलो दूध देत थी, मगर हमने कितनो इलाज कराओ...पर बेचारी चल बसी'.... एक गहरी उसांस भर दोनों ने अपनी अपनी राह ली.
इधर भूरी, लखन, सुरेश और साबित्री क्रांति-क्रांति खेल रहे थे... इसी बीच भूरी ने लखन को धक्का देकर गिरा दिया, जिससे लखन गुस्से से आग-बबूला हो गया और बोला..-मेंहे तो पेले सेइ पता थो, कि तू प्रतिक्रांतिकारी बुर्जुआ जासूस हैगी .. तू पेटी बुर्जुआ भी है और तेरी नाक भी बह रही है. इस पर भूरी का भाई चमक कर बोला 'तू भी तो कुलक हैगो, निक्कर तो संभाल नई सकत, बड़ो आओ क्रांतिकारी' ! और इस तरह अचानक, क्रांतिकारी और बुर्जुआ ताकतों में संघर्ष छिड़ गया... गुलेल की नली से क्रांति निकलने को ही थी की माँ-बाप ने आकर उन्हें छुड़ाया...
और इस तरह महान क्रान्ति का एक और नया अध्याय लिखते लिखते रह गया.
तो आप ऐसा कुछ भी लिख लेते हैं। बधाई हो।
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