क्या लिखूं, कि लिखने के लिए बहुत कुछ है और कुछ भी नहीं। पिछले एक साल से यह योजना बना रहा था कि कुछ लिखूंगा लेकिन लगता रहा कि लिखने के अलावा और भी बहुत काम हैं जमाने में, लेकिन अंततः ये लगा कि अगर २० साल की उम्र में ज़िंदगी में नोस्टाल्जिया सबसे अहम् पहलुओं में से एक हो जाए, तो लिखना मजबूरी है।
नाम की चोरी के लिए स्वर्गीय हरिशंकर परसाई से माफी मांग लेता हूँ। दरअसल वे मेरे पसंदीदा साहित्यकार हैं, और मुझे लगा कि मुझ निठल्ले के लिए निठल्ले की डायरी लिखना ही सही रहेगा।
आज का दिन भी अनेकों अनाम दिनों में से एक है, दिल्ली, जहाँ मै रहता हूँ, में बादलों और सूरज में प्रतियोगिता जारी है, उमस से जीना बेहाल है और बारिश जब होती है तो मानो शरमाई सकुचाई सी आते ही भागने की तैयारी में जुट जाती है। मैं यूनिवर्सिटी में आये नवागंतुकों के चेहरों को घूरता हुआ कमरे से निकलता हूँ, और रोज़ की तरह टहलता हुआ लाइब्रेरी पहुँच जाता हूँ अपने खालीपन की पुनर्हत्या करने। मुझे अपने शुरुआती दिनों की याद आती है, जब मै अकुलाए छौने सा कैम्पस में रगड़ता फिरता था, उस समय लगता था मानो अपनी आखों से हर चीज़ को हजम कर जाऊं, अब हर एक चीज़ पुरानी लगती है, हालाँकि चीज़ों के पुरानेपन में एक सांत्वना भी है, कि मैं अकेला ही पुराना नहीं हो रहा हूँ। क्लासेस अभी शुरू नहीं हुई हैं इसलिए निठल्लेपन का एहसास और बढ़ गया है। मेरे ख़याल से कुछ अति पढ़ाकुओं को छोड़ दें तो हमारी पीढी के सब छात्रों ने ये महसूस किया होगा, कि जब क्लासेस नहीं लगती तो उनकी कमी खलने लगती है, और जब लगती हैं तो काटने को दौडती हैं। कितनी ही बार कक्षा में बैठे हुए खिड़की से बाहर झांकते हुए मैंने अपने समय के अन्य सदुपयोग करने कि योजना बनाई है, लेकिन छुट्टियाँ आते ही सब हवा- हवाई हो जाता है।
खैर छोडिये जनाब हम निठल्ले ही भले हैं, क्योंकि निठल्लेपन में हरेक कामकाजी का मजाक उड़ाने और खिल्ली उड़ाने कि आजादी निहित होती है....
ek atyant hi rochak post......
ReplyDeletekeep going......
वाह प्यारे बोबक, तुम तो बहुत ही अच्छे लेखक निकले, सब से अलग,सब से ज़ुदा :-)!
ReplyDeleteलिखते रहो,ये ही आरज़ू भी,है और दुआ भी !
यह कौन लिख रहा है, तुम समझ ही गये होगे....
निट्ठल्लेपन में भी सातत्य बना रहे । चिट्ठेकारी के लिए जरूरी है।क्या खूबसूरत अभिव्यक्ति है ! बिलकुल निट्ठल्ले -सी !
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ReplyDeletenever heard like disO_o u did really well!!n u hv ability to be a pensador...!!swearing senor ..O_o=)
ReplyDelete@ स्वाति जी: धन्यवाद !! ब्लॉग की शुरुआत मस्ती में की थी, आगे देखिये कितना लिख पाता हूँ. :)
ReplyDelete@ शैशव: धन्यवाद.. सातत्य को न भूलूँ यही कोशिश है
ReplyDeleteप्रिय बालू
ReplyDeleteतुम्हारा ब्लॉग देखकर मन प्रसन्न हो गया .
दिल्ली का सावन और निठल्ले कि डायरी बहुत अच्छे लगे
तुम्हारी सधी हुई भाषा और पैनापन देखकर ऐसा लगा क़ि
तुम वाकई जहर उगलने निकले हो मगर प्यार के साथ |
पूरा ब्लॉग पढूंगा फिर और लिखूंगा
यह ख़ुशी क़ि बात है क़ि हरिशंकर परसाई तुम्हारे पसंदीदा लेखक है
गोपाल राठी
सांडिया रोड, पिपरिया 461775
मोबाइल न.09425608762, 09425408801
हम आ रहे हैं आज देखे धन्यवाद आप लोगों के प्रयास का
Deleteहम आ रहे हैं आज देखे धन्यवाद आप लोगों के प्रयास का
Deleteआदरणीय राठी जी,
ReplyDeleteधन्यवाद, इधर कुछ दिनों से ज्यादा लिख नहीं पा रहा हूँ.. ये ब्लॉग बस ऐसे ही शुरू कर दिया था, लेकिन अब लगता है नियमित लिखना पड़ेगा. :)
आपका बालू