Wednesday 11 August 2010

देख सखी सावन दिल्ली को॥

हाँ तो सखियों और सखाओं, एक बार फिर सावन का दौर है, काली घटाएं छाई हुई हैं, मोरों ने वनों में पंख फैला दिए हैं... दिल्ली की सडकों पर बने गड्ढे पोखरों और तालों में बदल रहे हैं, जिनमे अकस्मात् स्नान का अवसर राहगीरों और दोपहिया चालकों को चारपहिया पर सवार देवदूत अक्सर प्रदान करते हैं। इस इन्द्रप्रस्थ नगरी के स्वर्णिम पथ २ से ३ फीट कीचड से सुशोभित हैं और इस पावन बेला में संगीत सुनाने का जिम्मा भीमकाय मच्छरों को प्रदान किया गया है, जिसे वे बखूबी निभा रहे हैं साथ ही हमारे प्रदूषित रेडियोधर्मी रक्त का रसास्वादन कर मुंह बिचका रहे हैं, (क्या यार ये तो बड़ा बेकार फ्लेवर है, दिल्ली में टेस्टी चीज़ मिलती ही नहीं, लगता है वापस गाँव जाना पड़ेगा !)
इस नगरी में रहने वाले यक्ष-यक्षिनियाँ दिन भर अपने कार्यालय में कार्य और अकार्य कर जब डी टी सी अथवा ब्लू लाइन नामक पुष्पक विमानों में लटक कर अपने गंतव्य की ओर रवाना होते हैं, तो स्वेद बिन्दुओं से सुशोभित उनके ललाट चमक उठते हैं। इन यानों में मानव मात्र एक दूसरे के इतने समीप आ जाता है कि सारी दूरियां समाप्त हो जाती हैं। इनके परिचालकों में वो अद्भुत क्षमता है कि वे एक ही यान में सैकड़ों यात्रियों को एक दूसरे के अत्यंत निकट पहुँचने का अवसर भी देते हैं और आगे वालों को पीछे और पीछे वालों को आगे भेजते भेजते इस असार संसार के निस्सार जीवन की व्यर्थता का साक्षात्कार करा देते हैं। यहाँ तक कि आगे-पीछे करते हुए यात्री इस मर्त्य लोक से ही विलुप्त हो जाता है, उसकी सारी इन्द्रियां निष्क्रिय हो जाती हैं और वह इस लोक का वासी नहीं रहकर भव -बंधन को तोड़ देने की इच्छा करता है।
यह अद्वितीय अनुभव दिल्ली के हर बस यात्री को प्रतिदिन होता है.... साथ ही इस नीरस जीवन में कुछ रोचकता लाने के लिए दिल्ली की सडकों पर विशेष व्यवस्था की गयी है, अब आप दिल्ली की सडकों से सीधे पाताल लोक जाने की सुविधा का लाभ ले सकते हैं॥ कल्पना कीजिए !! एक क्षण आप हरित उद्यान (ग्रीन पार्क) के राजपथ पर हैं, अगले ही क्षण एक रोमांचकारी खटके के साथ आप "गड़प" जमीन के अन्दर समा गए... ऐसा रोमांच तो विडियो गेम में भी नसीब नहीं होता... इसीलिए दिल्ली के सारे फुटपाथ खोद दिए गए हैं ताकि आप एक शहर में नहीं एडवेंचर आईलेंड में घूमने का मज़ा उठा सकें...
तो छोड़िये सावन के झूलों का मोह , और ब्लू लाइन के झूले का मज़ा लीजिये और यह सावन मच्छरों और दिल्ली की सडकों के साथ मनाइए...
ऐसी यादगार बारिश हिन्दी साहित्य के नायक नायिकाओं को भी नसीब नहीं होती...
गरज-बरस सावन घिर आयो...

10 comments:

  1. तो निठल्ला कामकाजी हो गया है इतनी जल्दी नई पोस्ट.
    वेसे इस पोस्ट को पढ़ कर संस्कृत साहित्य याद आ रहा है. (इन दिनों बाण भट्ट की आत्मकथा पढ़ रही हू.)

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  2. कृपया अपने ब्लॉग से वर्ड वैरिफ़िकेशन को हटा इससे टिप्पणी देने में दिक्कत होती है।

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  3. काली घटाएं छाई हुई हैं, मोरों ने वनों में पंख फैला दिए हैं...
    @ यहाँ "फैला दिए हैं.. " के स्थान पर "फैला दिए होंगे.." जमेगा.
    कुलमिलाकर एक शानदार पोस्ट. दिल्ली नगर में रहने वालों की ज़िन्दगी को एक नये अंदाज़ में पेश करती आपकी ये पोस्ट काबिल-ए-तारीफ़ है.

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  4. @ सभी को धन्यवाद, मुझे आशा नहीं थी की इतनी टिप्पणियां मिलेंगी.....
    @सुरेन्द्र भाई.... वर्ड वेरिफिकेशन हटा रहा हूँ, धन्यवाद
    @प्रतुल जी: आशा है आगे भी आप सलाह देते रहेंगे की कैसे पोस्ट बेहतर बन सके...
    @ आनंद जी एवं सुरेन्द्र भाई: आपके द्वारा दी गयी लिंक भी देखता हूँ, हालाँकि संस्कृत स्कूल के बाद कभी पढ़ी नहीं :)

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  5. एक शानदार पोस्ट|

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  6. achchha prayas hai. jaree rakhen.
    --CB Choudhary

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  7. इस नए सुंदर चिट्ठे के साथ आपका ब्‍लॉग जगत में स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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  8. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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