Friday 31 December 2010

दूर तक याद -ए -वतन आई थी समझाने को

हैफ हम जिसपे कि तैयार थे मर जाने को

जीते जी हमने छुडाया उसी काशाने को
क्या न था और बहाना कोई तडपाने को
आसमान क्या यही बाकी था सितम ढाने को
लाके ग़ुरबत में जो रक्खा हमें तरसाने को

फिर न गुलशन में हमें लाएगा सैयाद कभी
याद आयेगा किसे यह दिल -ए -नाशाद कभी
क्यों सुनेगा तू हमारी कोई फ़रियाद कभी
हम भी इस बाग़ में थे क़ैद से आज़ाद कभी
अब तो काहे को मिलेगी ये हवा खाने को

दिल फ़िदा करते हैं कुर्बान जिगर करते हैं
पास जो कुछ है वो माता की नज़र करते हैं
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं
खुश रहो अहल -ए -वतन , हम तो सफ़र करते हैं
जाके आबाद करेंगे किसी वीराने को

न मयस्सर हुआ राहत से कभी मेल हमें
जान पर खेल के भाया न कोई खेल हमें
एक दिन का भी न मंजूर हुआ बेल हमें
याद आयेगा अलीपुर का बहुत जेल हमें
लोग तो भूल गए होंगे उस अफसाने को

अंदमान ख़ाक तेरी क्यों न हो दिल में नाजां
छके चरणों को जो 'पिंगले' के हुई है जीशां
मरतबा इतना बढे तेरी भी तकदीर कहाँ
आते आते जो रहे ‘बाल तिलक ’ भी मेहमान
‘मांडले’ को ही यह एजाज़ मिला पाने को *

बात तो जब है कि इस बात की जिदें ठानें
देश के वास्ते कुर्बान करें हम जानें
लाख समझाए कोई , उसकी न हरगिज़ मानें
बहते हुए खून में अपना न गरेबाँ सानें
नासेहा, आग लगे इस तेरे समझाने को

अपनी किस्मत में अज़ल से ही सितम रक्खा था
रंज रक्खा था , मेहन रक्खा था , गम रक्खा था
किसको परवाह थी और किस्में ये दम रक्खा था
हमने जब वादी -ए -ग़ुरबत में क़दम रक्खा था
दूर तक याद -ए -वतन आई थी समझाने को

हम भी आराम उठा सकते थे घर पर रह कर
हम भी माँ बाप के पाले थे, बड़े दुःख सह कर
वक़्त -ए -रुखसत उन्हें इतना भी न आये कह कर
गोद में आंसू जो टपके कभी रुख से बह कर
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को

देश -सेवा का ही बहता है लहू नस -नस में
हम तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें
सरफरोशी की अदा होती हैं यों ही रसमें
भाले -खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में
बहनों , तैयार चिताओं में हो जल जाने को

अब तो हम डाल चुके अपने गले में झोली
एक होती है फकीरों की हमेशा बोली
खून में फाग रचाएगी हमारी टोली
जब से बंगाल में खेले हैं कन्हैया होली
कोई उस दिन से नहीं पूछता बरसाने को

अपना कुछ गम नहीं पर हमको ख़याल आता है
मादर -ए -हिंद पर कब तक जवाल आता है
‘हरदयाल’ आता है ‘यूरोप’ से न ‘लाल ’ आता है **
देश के हाल पे रह रह मलाल आता है
मुन्तजिर रहते हैं हम ख़ाक में मिल जाने को

नौजवानों , जो तबीयत में तुम्हारी खटके
याद कर लेना हमें भी कभी भूले -भटके
आप के जुज्वे बदन होवे **** जुदा कट -कट के
और साद चाक हो माता का कलेजा फटके
पर न माथे पे शिकन आये क़सम खाने को

देखें कब तक ये असीरां -ए -मुसीबत छूटें
मादर -ए -हिंद के कब भाग खुलें या फूटें
‘गांधी आफ्रीका की बाज़ारों में सड़कें कूटें
और हम चैन से दिन रात बहारें लूटें
क्यों न तरजीह दें इस जीने पे मर जाने को

कोई माता की उम्मीदों पे न डाले पानी
ज़िंदगी भर को हमें भेज के काले पानी
मुंह में जल्लाद हुए जाते हैं छाले पानी
आब -ए -खंजर का पिला करके दुआ ले पानी
भरने क्यों जाएँ कहीं उम्र के पैमाने को

मैकदा किसका है ये जाम -ए -सुबू किसका है
वार किसका है जवानों ये गुलू किसका है
जो बहे कौम की खातिर वो लहू किसका है
आसमान साफ़ बता दे तू अदू किसका है
क्यों नए रंग बदलता है तू तड़पाने को

दर्दमंदों से मुसीबत की हलावत पूछो
मरने वालों से ज़रा लुत्फ़ -ए -शहादत पूछो
चश्म -ए -गुस्ताख से कुछ दीद की हसरत पूछो
कुश्ताय -ए -नाज़ से ठोकर की क़यामत पूछो
सोज़ कहते हैं किसे पूछ लो परवाने को


नौजवानों यही मौक़ा है उठो खुल खेलो

और सर पर जो बला आये खुशी से झेलो
कौम के नाम पे सदके पे जवानी दे दो
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएं ले लो
देखें कौन आता है इरशाद बजा लाने को


- राम प्रसाद बिस्मिल

हैफ=हाय !
काशाना=ठिकाना
बेल= जमानत
मरतबा=ओहदा
एजाज़= इज्जत, सम्मान
नासेहा= उपदेशक (जो नसीहत दे)
अज़ल=शुरुआत
मेहन=पीड़ा
ग़ुरबत=घर/वतन से दूर परदेस में/गरीबी
तिफ्ल=बच्चे
जुज्वे-बदन होना=एकरूप हो जाना, मिल जाना
असीरान-इ-मुसीबत= गुलाम होने का एहसास
आब=पानी/तलवार की धार
जाम-ए-सुबू= जाम और सुराही
गुलू=गर्दन
हलावत=मिठास
कुश्ताय-ए-नाज़=जिसे नजाकत से मार दिया गया हो..
सोज़= गर्मी / जूनून
इरशाद=हुकुम
* यहाँ मांडले और अंडमान जेलों का जिक्र है, जहां बाल गंगाधर तिलक और विष्णु गणेश पिंगले बंद थे..
**लाला हरदयाल: ग़दर पार्टी के सदस्य, 'लाल' भी संभवतया किसी क्रांतिकारी की और इंगित करता है.

यह कविता यहाँ से लेकर लिप्यांतरित की गयी है, हिज्जे या मतलब में गलती हो तो क्षमायाचना सहित..

4 comments:

  1. dilo dimag ko hila kar rakh dene wali kavita hai. mahaan shaheed bismil ji ko naman aur is kavia ko prastut karne ke liye aapko badhaai. nav varsh ki shubh kaamnayein sweekar karein.

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  2. बीते कालिख भरे साल पर आते साल का आगाज इससे बेहतर नहीं हो सकता। शायद कुछ उबाल आए हमारे ठंडे होते खून में।

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  3. पिछला महीना ही उनके बलिदान का गया .....

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