Monday 4 July 2011

पप्पू की आँखें लाईट ब्लू ...

जब जब ये गाना सुनते हैं नाचीज़ से रहा नहीं जाता, बरबस ही निकल पड़ता हूँ इस पप्पू की तलाश में..मध्य-भारत के किसी भी धूल-धूसरित कसबे में रहते हज़ारों लाखों पप्पुओं में नज़र घूम-घूम कर थक जाती है, लेकिन एक अदद अंग्रेज पप्पू अभी तक मिला नहीं, ब्रेडो की घड़ी पहने कुड़ियों में क्रेज़ बना वह पप्पू न जाने किस गली में मिलेगा... हमारा पप्पू तो रोज सुबह साढ़े आठ बजे सिर में खोपरे का तेल लगा कर चपेट कर बाल काढ़ता है, फिर चटख रंग की बुश्शर्ट और टाईट पैंट 'पाटीदार टेलर्स फैंसी मेंस सूटिंग एंड शर्टिंग' से सिलाई हुई पहन कर घर से निकलता है। जाते जाते मम्मी घर से आवाज़ देती हैं बेटा पप्पू ज़रा चायपत्ती लेते आना, तो भुनभुनाते हुए मम्मी से कुछ पैसे ज्यादा लेकर निकल पड़ता है। तंग गलियों में लड़-झगड़कर पानी भरती आंटियों और दफ्तर या दुकान जाते अंकलों से दुआ सलाम करते हुए पप्पू को वही पुराने यार दोस्त दिखलाई पड़ते हैं चाय की दुकान, पान की गुमटियों और मोबाईल की दुकानों पर रुकते ठहरते पप्पू अपने गंतव्य तक पहुँच जाता है। पप्पू का धंधा उसकी हैसियत के मुताबिक़ कुछ भी हो सकता है, मोटर-मैकेनिक, दुकान में हेल्पर, दफ्तर में क्लर्क-चपरासी, बीमा एजेंट, इलेक्ट्रिशियन, या फिर हम्माल, चपरासी या चाय की दुकान का मजदूर।
इस पप्पू को उस पप्पू को टीवी पर देखने का समय कम ही मिलता है, लेकिन कभी कभार देख कर जेब से कंघी निकाल कर टेढ़ी मांग निकाल लेता है और एक बार आईना देख कर फिर काम पर लग जाता है।
मुझे उस दिन का इंतज़ार है जब हमारे पप्पू पर भी गाने बनेंगे और उस विदेशी पप्पू को खोज कर इस पप्पू के सामने खडा किया जाएगा, देखते हैं दिन भर दुकान पे उस्ताद की गालियाँ खाने के बाद कौन बेहतर डांस करता है, अपने पप्पू ने भी कई बरातों में माहौल जमा दिया था कसम से...